Class 12 Antra Hindi Chapter 16 दूसरा देवदास NCERT Summary
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Chapter 16 दूसरा देवदास Class 12 Antra NCERT Notes
पाठ परिचय
इस पाठ में लेखिका ममता कालिया ने हर की पौड़ी की शाम बताई है। वहाँ लोग अपने मनोकामनाओं को पूरा करने आते हैं। संध्या हर पौड़ी पर अपने अलग रूप में उतरती है। यह कहानी युवा मन में पहली अचानक मुलाकात से उत्पन्न होने वाली हलचल और कल्पना को चित्रित करती है।
लेखिका परिचय
ममता कालिया का जन्म सन् 1940 ई० में उत्तर प्रदेश के मथुरा में हुआ। उन्होंने अपनी शिक्षा नागपुर, पुणे, इंदौर, मुंबई आदि कई स्थानों पर ली। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में मास्टर डिग्री प्राप्त की। 1963 से 1965 तक वह दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज में अंग्रेज़ी की शिक्षिका रहीं। 1966 से 1970 तक एनडीटी महिला विश्वविद्यालय, मुंबई में शिक्षक रहीं। 1973 से 2001 तक वह महिला सेवा सदन डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद में प्राचार्य रहीं। 2003 से 2006 तक भारतीय भाषा परिषद, कलकत्ता (कोलकाता) की अध्यक्ष रहीं । कथा-साहित्य में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने 1989 में इन्हें ‘कहानी सम्मान’ और 2004 में ‘साहित्य भूषण’ प्रदान किए। अभिनव भारती कलकत्ता (कोलकाता) ने उनके लेखन पर रचना पुरस्कार से सम्मानित किया। सरस्वती प्रेस का श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार और साप्ताहिक हिंदुस्तान का श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार भी इन्हें प्राप्त हो चुका है। नई दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन करती हैं।
रचनाएँ – बेघर, नरक दर नरक, एक पत्नी के नोट्स, प्रेम-कहानी, लड़कियाँ, दौड़ (उपन्यास)। पच्चीस साल की लड़की, थियेटर रोड के कौवे आदि (कहानी संग्रह)।
दूसरा देवदास पाठ का सार
हर की पौड़ी पर संध्या आरती बेला की थी। बहुत से लोग अपनी मनोकामनाओं को लेकर आए थे। गंगा-सभा के स्वयंसेवक मुस्तैदी से खाकी वर्दी में घूम रहे थे। जैसे-जैसे आरती का समय आता जाता है फूलों के दोने महँगे होते जाते हैं। पाँच बजे एक रुपये में बिकने वाले फूलों के दोने दो-दो रुपये के हो गए हैं। कुछ भक्त सामान्य तो कुछ विशेष यानी एक सौ एक या इक्यावन रुपये वाली आरती बोलकर आए थे।
आरती से पहले सभी श्रद्धालु गंगा जल में स्नान कर रहे थे। बहुत से पंडे हाथों में सिंदूर और चंदन लेकर भक्तों के माथों पर लगाने के लिए घूम रहे थे। गंगा मैया की मूर्ति और अन्य देवताओं की मूर्तियाँ सजी हैं साथ ही देशी घी के डिब्बे सजे हैं। आरती से पहले स्त्रियाँ स्नान करती हैं। तट पर उनकी सुरक्षा के लिए कुंडों में लगी जंज़ीरें पकड़ रखी हैं। पुरुष जो स्नान कर चुके हैं, उनके माथे पर पंडे तिलक लगा रहे हैं। हर व्यक्ति अपनी मनोकामना पूरी होने पर आरती कर रहा है। अचानक पंचमंज़िली नीलांजलि के दीप जलते ही आरती का शुभारंभ हो गया. पुजारियों ने एक स्वर में आरती शुरू की।
इसी के साथ घंटे-घड़ियाल बजने लगते हैं और लोगों की मनौतियाँ लहरों पर बहने लगती हैं। भक्तों ने पानी में मनौतियों की किश्तियाँ छोड़ दीं। गंगा-पुत्र पैसे लेकर फूलों को पानी में चलता कर देता। वह अपने काम में व्यस्त रहता, लोगों के हँसने पर भी हतप्रभ नहीं होता। गंगा मैया ही उसकी जीविका और जीवन है। पुजारियों की आवाज बंद होते ही लता मंगेशकर की मधुर स्वर चहुँ ओर सुनाई देने लगे। औरतें गीले कपड़े पहनकर आरती करती हैं। विशेष भक्तों से पुजारी ब्राह्मण भोजन दान निष्ठान के लिए धनराशि कबूलवाते हैं।
आरती खत्म होने के बाद आरती के दोने फिर से एक रुपये में बिकने लगते हैं। संभव घाट पर बहुत देर तक नहा रहा था। वह नहाकर अपने सामान लेकर वहाँ से चला गया। उसने पुजारी को याद करवाने पर ही दर्शन किए। उसने अपनी नानी को मंदिर में कुछ पैसे देने के लिए जेब से एक नोट निकाला। पुजारी ने उसके हाथ पर एक लाल कलावा बाँधा। उसके दूसरी ओर एक दुबली-पतली कलाई पुजारी की ओर बढ़ी। उसने थाली में पाँच रुपये डालकर लड़की की आँखें बंद करके संभव के पास खड़ी हो गई। उसकी गुलाबी आँचल ने सम्भव के कुर्ते का एक कोना भी गीला कर दिया था। पुजारी ने इसका अर्थ युगल रूप में लेकर उन दोनों को अनजाने में आशीष दिया। लड़का-लड़की इसे सुनकर हैरान हो गए।
इसके बाद टोकन देकर चप्पल लेते समय फिर दोनों की नज़रें एक-दूसरे से मिल गईं। वे दोनों एक-दूसरे को निर्दोष बताना चाह रहे थे लेकिन लड़की ने अपनी चप्पलें जैसे-तैसे पहनीं और आगे बढ़ गई। संभव ने उसे खोजने की बहुत कोशिश की। उसे हर जगह भीड़ दिखी लेकिन कोई गुलाबी भीगी आकृति नहीं दिखाई दी। भटकते-भटकते संभव हार गया और थककर घर वापस आ गया। घर पहुँचते ही नानी ने देर से आने की शिकायत की और हाथ-मुँह धोकर खाने की बात की, लेकिन संभव की भूख उड़ चुकी थी। उसकी नींद और स्वप्न के बीच आँखों में घाट की पूरी पात उतर आई। कल लड़की से मिलने की उम्मीद से वह उठ कर बैठ गया। अपनी नानी से रोटी माँगने लगा। भोजन करते हुए उसे आशीष वचन की घटना फिर से याद आई। फिर वह उसी सपने में खो गया और खाना बीच में छोड़ उठ गया।
इसी साल संभव एम.ए. करके सिविल सेवाओं की प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने वाला था। उसके माता-पिता ने सोचा था कि गंगा मैया के दर्शन से वह इसमें निश्चित रूप से चुन लिया जाएगा, लेकिन वह घूमने और नानी से मिलने हरिद्वार आ गया था। उसके जीवन में अभी तक कोई लड़की नहीं आई थी। आज घाट पर जो कुछ हुआ, सब कुछ उसके लिए एक नई अनुभूति थी, जिसमें उसे थोड़ा सुख और थोड़ा दुःख लग रहा था। मन ही मन उसने फैसला किया कि कल शाम पाँच बजे घाट पर जाकर पौड़ी पर बैठेगा, जहाँ से वह पुजारी के देवालय को देख सकेगा। वह बहुत से प्रश्न सोचने लगा। उसने सुबह उठते ही नानी को फोन किया, लेकिन वह नहीं उठा। नानी पूजा करने के लिए अकेले चली गई। वह अब भी स्वप्न में लड़की से कई प्रश्न पूछने का विचार करने लगा।
नानी नहाकर वापिस आई लेकिन वह अभी भी सपनों में खोया था। उठकर दो सौ रुपये लेकर घाट की ओर चला गया। पौड़ी बहुत व्यस्त थी। भीड़ से एक छोटे लड़के ने संभव का ध्यान भंग किया। संभव के पूछने पर बच्चे ने बताया कि उसकी बुआ साथ में है और वह अकेला नहीं है। बच्चे के मंसा देवी जाने की बात सुनकर संभव की भी इच्छा हुई लेकिन उसकी नानी ने मना किया, इसलिए वह थोड़ा डरा। वह पैदल नहीं जाकर केबिन कार से मंसा देवी पहुँचा। हिंडोले में बैठकर चारों ओर विहंगम दृश्य देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गया।
संभव ने मंदिर पहुँचकर देवी के सामने मनोकामना की गाँठ लगाई, सिर झुकाकर नैवेद्य चढ़ाया और निकल गया। वापस केबिन कार में बैठ गया।केबिन – कार से आते हुए उसे चौथी पीली कार में वही बच्चा और उसके साथ बैठी हुई दुबली-पतली लड़की उसे दिखाई दी । उनको देख संभव बेचैन हो गया। वह चारों ओर घूमकर उनकी पहचान करने लगा। केबिल कार से उतरकर संभव ने बच्चे को रोका। बच्चे ने भी उसकी पहचान की, लेकिन फिर एक पतली-सी आवाज़ आई कि “चलना नहीं है।” बच्चे की बुआ से मुलाकात हुई। वह बच्चे की बुआ पारो ही थी जो पहली बार पौड़ी पर मिली थी। वह उससे मिलकर प्रसन्न हो गया। संभव की मनोकामना पारो से मिलकर पूरी हुई, और उसे लाल-पीला धागा और उसकी गाँठ का मधुर स्मरण हुआ।
शब्दार्थ
गोधूलि बेला – संध्या का समय, कलावा – कलाई में बाँधी गई लाल डोरी, मनोरथ – मन की इच्छा, ब्यालू – भोजन, झुटपुटा – कुछ-कुछ अँधेरा, आत्मसात – अपने में समा लेना, मुस्तैदी से – चौकसी से, समवेत – इकट्ठा, सद्य-स्नात – शीघ्र स्नान किया हुआ, हुज्जत – बहस, चरणामृत – प्रसाद, नीलांजलि – आरती, बेखटके – बिना किसी रुकावट के, नौ दो ग्यारह होना – भाग जाना, अस्फुट – अस्पष्ट, स्निग्ध – शांत।