Class 11 Aroh Hindi आत्मा का ताप NCERT Summary
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आत्मा का ताप Class 11 Hindi Aroh NCERT Notes
यह पाठ रज़ा की आत्मकथात्मक पुस्तक आत्मा का ताप का एक अध्याय है। इसका अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद मधु बी. जोशी ने किया है। अपनी आत्मकथा के इस अंश में लेखक ने चित्रकला के क्षेत्र में अपने आरंभिक संघर्षों और सफलताओं के संबंध में बताया है।
लेखक परिचय
सैयद हैदर रज़ा का जन्म 22 फरवरी, सन 1922 को मध्य प्रदेश के बाबरिया गाँव में हुआ था । इन्होंने स्कूली शिक्षा नागपुर बोर्ड से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। पिता के रिटायर हो जाने के कारण उन्होंने गोंदिया में ड्राइंग टीचर की नौकरी कर ली थी। सन 1947 में जे० जे० स्कूल ऑफ़ आर्ट में नियमित छात्र के रूप में प्रवेश लिया। ये दो वर्ष की फ्रांस सरकार की छात्रवृत्ति पर कला के अध्ययन के लिए फ्रांस भी गए थे।इन्होंने भारतीय आधुनिक कला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित किया है। इन्हें ‘ग्रेड ऑव ऑफ़िसर ऑव द ऑर्डर ऑव आर्ट्स एंड लेटर्स’ सम्मान दिया गया है।
Chapter 16 आओ, मिलकर बचाएँ Class 11 Hindi Aroh NCERT Notes
लेखक ने नागपुर स्कूल की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था । पिता के रिटायर होने पर वह गोदिया में ड्राइंग का अध्यापक बन गया। शीघ्र ही उन्हें बंबई (मुंबई) के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में अध्ययन के लिए मध्य प्रांत की सरकारी छात्रवृत्ति सितंबर 1943 में मिली। अमरावती के स्कूल से त्याग-पत्र देकर वह बंबई पहुँचा । वहाँ पहुँचकर निराशा हाथ लगी क्योंकि तब तक जे० जे० स्कूल ऑफ़ आर्ट में दाखिला बंद हो चुका था। उससे उसकी छात्रवृत्ति वापस ले ली गई। सरकार ने उसे अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी दी परंतु वह वापस नहीं लौटा और मुंबई में ही रहने लगा। यहाँ एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में डिजाइनर की नौकरी की तथा साल भर की मेहनत के बाद स्टूडियो के मालिक जलील व मैनेजर हुसैन ने उसे मुख्य डिजाइनर बना दिया।
वह सारा दिन दफ्तर में काम करने के बाद मोहन आर्ट क्लब में जाकर अध्ययन करता था। इन दिनों वह रात ज़ेकब सर्कल, सात रास्ता की पहली मंज़िल में अपने भाई के परिचित टैक्सी ड्राइवर के साथ रहता था| वह ड्राइवर रात में टैक्सी चलाता था तथा दिन में सोता था। इस तरह इनका काम चलता था। एक रात नौ बजे वह कमरे पर पहुँचा तो वहाँ पुलिसवाला खड़ा था। पता चला कि यहाँ हत्या हुई है। वह घबरा गया तथा तुरंत पुलिस स्टेशन जाकर उसने कमिश्नर से मिलकर सारी बात बताई। कमिश्नर ने बताया कि टैक्सी में किसी ने सवारी की हत्या कर दी थी। लेखक ने अपनी सारी परेशानी जलील साहब को बताई। उन्होंने अपने डिपार्टमेंट में रहने के लिए कमरा दे दिया । वहाँ वह रात देर तक अपना काम करता रहता था।
कुछ दिनों बाद जलील साहब ने उसे एक ठिकाना इस शर्त पर दिलवा दिया कि उसे उनके यहाँ काम करते रहना होगा । वह कला विभाग का प्रमुख बना दिया गया। इस तरह वह अपना काम पूरी लगन से करने लगा। उसकी लगन ने उसे चार साल में ही सन 1948 में आर्ट्स सोसाइटी का स्वर्ण पदक दिलवा दिया। दो साल बाद उसे फ्रांस सरकार की छात्रवृत्ति मिल गई।
नवंबर, 1943 में आट्र्स सोसाइटी ऑफ इंडिया की प्रदर्शनी में लेखक के दो चित्र प्रदर्शित हुए। अगले दिन टाइम्स ऑफ इंडिया में कला समीक्षक रुडॉल्फ वॉन लेडेन ने लेखक के चित्रों की तारीफ की। दोनों चित्र 40-40 रुपये में बिक गए। ये पैसे उसकी महीने भर की कमाई से अधिक थे। वेनिस अकादमी के प्रोफेसर वाल्टर लैंगहैमर ने भी उनके काम की प्रशंसा की। उनके लिए सबसे बड़ी उपलब्धि वियना के कला-संग्राहक एम्मेनुएल श्लैसिंगर का उनकी कला का प्रशंसक बनना था। ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के आर्ट डायरेक्टर लैंगहेमर ने उन्हें काम करने के लिए अपना स्टूडियो दे दिया। लेखक दिन में बनाए हुए चित्र उन्हें दिखाता। उसका काम निखरता गया। लैंगहैमर उसके चित्र खरीदने लगे। 1947 ई. में वह जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट का नियमित छात्र बन गया।
भारत में 1947 और 1948 में महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी थीं। इन घटनाओं के साथ लेखक के जीवन में भी महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं। इस दौरान उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई, जिससे उसकी ज़िम्मेदारी बढ़ गई । वह उस समय पच्चीस वर्ष का था। लेखक युवा कवियों और चित्रकारों के साथ रहता था। उन्हें लगता था कि वे पहाड़ हिला सकते हैं। सभी अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार बढ़िया काम करने में जुट गए।
सन 1948 ई० में लेखक श्रीनगर गया। वहाँ कश्मीर पर कबायली हमले हुए थे। उस समय उसने निश्चय कर लिया कि वह भारत में ही रहेगा। वह बारामूला तक गया जिसे घुसपैठियों ने ध्वस्त कर दिया था। लेखक के पास कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला का सिफारिश पत्र था जिसके आधार पर वह यात्रा कर सका। श्रीनगर में उसकी मुलाकात फोटोग्राफ़र हेनरी कार्तिए-ब्रेसाँ से हुई। उसने लेखक की चित्रों की प्रशंसा की, परंतु उनमें रचना का अभाव बताया। उसने सेजाँ का काम देखने की सलाह दी। लेखक पर इसका गहरा प्रभाव हुआ। मुंबई आकर उसने अलयांस फ्रांसे में फ्रेंच भाषा सीखी।
सन 1950 में फ्रेंच दूतावास के सांस्कृतिक सचिव ने उससे पूछा कि उसे कौन कलाकार अधिक पसंद है ? लेखक ने कहा कि उसे सेज़ाँ, वॉन गॉग, गोगाँ पिकासो, मातीस, शागाल और ब्रॉक पसंद हैं। इन सबमें पिकासो अधिक पसंद है क्योंकि पिकासो का समय कला में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । उसके जवाब से सचिव ने खुश होकर उसे एक वर्ष की अपेक्षा दो वर्ष की छात्रवृत्ति प्रदान की।
लेखक 2 अक्टूबर, 1950 को फ्रांस के मार्सेई पहुँचा। बंबई में उसमें काम करने की इच्छा थी। आत्मा का चढ़ा ताप लोगों को दिखाई देता था। लोग सहायता करते थे। वह युवा कलाकारों से कहता है कि चित्रकला व्यवसाय नहीं, आत्मा की पुकार है। उनके परिवार में केवल ज़हरा ज़ाफरी को काम करने की लगन थी । वह दमोह शहर के आसपास के ग्रामीणों के साथ काम करती हैं। लेखक यह संदेश देना चाहता है कि कुछ घटने के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे न बैठे रहो-खुद कुछ करो। अच्छे संपन्न परिवारों के बच्चे काम नहीं करते, जबकि उनमें तमाम संभावनाएँ हैं।
लेखक कहता है कि उसमें काम करने की छटपटाहट थी और संकल्प भी था। उसके लिए बंबई वाला जीवन उसके जीवन में जागृति लानेवाला समय था। गीता भी कहती है कि जीवन में जो कुछ है, तनाव के कारण है। जीवन का पहला चरण बचपन एक जागृति है, लेकिन लेखक के लिए बंबई का दौर ही जागृति चरण था। मनुष्य के लिए पैसा कमाना इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि उस पर उत्तरदायित्व आ जाते हैं। ऐसी ही स्थिति लेखक के लिए माता-पिता के मरने के बाद उत्पन्न हुई थी । उस समय की स्थिति उसके लिए बहुत कठिन थी।
शब्दार्थ
अंतरात्मा – अंत:करण, मन
गलीज़ वातावरण – गंदा या दूषित वातावरण पेशकश – सौगात
दक्ष – निपुण
आत्मसात् – जो पूरी तरह से समाहित या अपने अंतर्गत कर लिया गया हो
तत्कालीन – उस समय का
संयोजन – जोड़ने या मिलाने की क्रिया
अक्ल गुम होना – घबरा जाना
सामर्थ्य – योग्यता, कुछ कर सकने की शक्ति
त्रासदी – दुखदायी, स्थिति
धृष्टता – ढिठाई, निर्लज्जता