Chapter 7 छाया मत छूना Class 10 Hindi Kshitij NCERT Summary

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Chapter 7 छाया मत छूना Class 10 Hindi Kshitij NCERT Notes

प्रस्तुत कविता में कवि यह बताना चाहता है कि बीती बातों का स्मरण न करने में ही बुद्धिमानी है। उनके स्मरण से वह दुखी हो जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाएँगे। पहले की मधुर स्मृतियों और सुख के क्षणों को याद करके वर्तमान दुःख को और गहरा नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से दुःख दोगुना हो जाता है। कवि को जीवन में कभी यश, वैभव, मान और प्रभुता नहीं मिली फिर भी वे इनकी मृगतृष्णा में बेतहाशा दौड़ते रहे। जीवन में समय रहते किसी भी सुख के न मिलने और सदा सब कुछ छिनते चले जाने से अत्यंत दुखी हो वे यह नहीं समझ पाए कि हर चाँदनी रात अपने पीछे एक काली अँधेरी रात भी लिए रहती है। सुखों के पीछे दुख भी छिपे रहते हैं। इसलिए केवल इस सत्य को समझकर यथार्थ का सामना करना चाहिए।

छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण-
छाया मत छूना मन, होगा दुख दूना।

शब्दार्थ: दूना – दोगुना, सुरंग – सुन्दर रंगों वाली, सुधियाँ – स्मृतियाँ, यादें, सुहावनी – मन को अच्छी लगने वाली, छवियाँ – यादों में समाये रूप और दृश्य, चित्रगंध – चित्र के साथ-साथ उनकी गंध का होना, फैली – प्रसरित, मनभावनी – मन को अच्छा लगने वाली, यामिनी – तारों भरी चाँदनी रात, कुंतल – केश, बाल, छुअन – स्पर्श, जीवित क्षण – जीता-जागता अनुभव।

कवि कहते हैं कि अपने अतीत जीवन की यादों को बार-बार याद करने से हमारा मन और अधिक दुखी हो जाएगा। यह तो मानी हुई बात है कि समय ठहरता नहीं है। जो अभी है, वह भी अगले पल अतीत बन जाएगा। पिछली स्मृतियाँ भ्रमित करेंगी और उनको याद कर दुःख दोगुना हो जाता है। हर व्यक्ति के जीवन में कुछ रंग-बिरंगी सुखद यादें रहती हैं, जिनके सहारे व्यक्ति अपने शेष जीवन को बिता देना चाहता है, किंतु कवि हमें सचेत करते हुए कहते हैं कि तारों भरी चाँदनी रात, जब हम प्रिया के संग रंगीन सपनों में खोए रहते हैं, वह बीत गई। अब तो केवल प्रिया के सुंदर केशों में गुंथे महकते फूलों की सुगंध की याद भर रह गई है। इस तरह भूला हुआ प्रत्येक क्षण तुम्हारे सामने मानो जीवित होकर खड़ा हो जाता है, परन्तु फिर भी ये यादें छायाएँ ही हैं। इनसे मन को दुगुना दु:ख मिलता है। इसलिए इनसे दूर रहना ही उचित है।

काव्य सौंदर्य

  • कविता सरल व खड़ी बोली में लिखी गई है। कहीं-कहीं तत्सम और तद्भव शब्दों के पुट मिलते हैं, जैसे- कुंतल, तन-सुगंध, यामिनी, (तत्सम), छुअन, दूना (तद्भव) आदि।
  • ‘दुख दूना और सुरंग सुधियाँ सुहावनी’, में अनुप्रास अलंकार की छटा दिखाई पड़ती है।
  • चित्र-गंध में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  • ‘तन-सुगंध’ सामासिक शब्द है।
  • कविता में छायावाद का पुट प्रभाव दिखाई पड़ता है।

यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

शब्दार्थ: यश – प्रसिद्धि, वैभव – धन-संपत्ति, ऐश्वर्य, मान – सम्मान, सरमाया – पूँजी, मूल धन, भरमाया – भ्रम में डाला, प्रभुता – बड़प्पन, प्रभुता का शरण-बिंब – बड़प्पन का अहसास, मृगतृष्णा – कड़ी धूप में रेतीले मैदानों में जल के होने का अहसास, छलावा, चंद्रिका – चाँदनी, कृष्णा – अंधकारमयी, यथार्थ – सत्य, वास्तविकता, सच्चाई।

कवि कहता है कि इस संसार में न तो यश का कोई मूल्य है, न धनसम्पत्ति एवं सुख-साधनों का। यहाँ न मान-सम्मान से कोई सन्तुष्टि मिलती है और न धन-दौलत से सन्तोष मिलता है। लोग नाम-यश, मान, संपत्ति, धन-दौलत, ऐश्वर्य आदि के पीछे सारी जिंदगी भागते रहते हैं क्योंकि आम लोगों के लिए ये ही चीजें सुख देने वाली होती हैं। किंतु कवि कहते हैं कि जिस प्रकार रेगिस्तान में पानी की आस में पशु इधर से उधर भटकते रहते हैं और दूर कहीं सूर्य की तेज़ किरणों से उत्पन्न जल का आभास देखकर ठगे जाते हैं, ठीक उसी प्रकार हम सब मनुष्य भी सांसारिक सुखों के पीछे मृगतृष्णा के समान भागते रहते हैं। हम जितना अधिक यश, नाम, मान, धन-संपत्ति, वैभव, ऐश्वर्य और बड़प्पन की चाह करते हैं, उतना ही अधिक इन सब चीज़ों की चाहत बढ़ती जाती है। इस चाहत का कोई अंत नहीं। सच्चाई यह है कि हर चाँदनी रात के पीछे एक काली रात छिपी हुई है यानी हर सुख के पीछे एक दुःख छिपा रहता है। इसलिए छायाओं या कल्पनाओं में सुख खोजने की बजाय जीवन के यथार्थ अर्थात् सत्य को समझना चाहिए और उसी का पूजन करना चाहिए।

काव्य सौंदर्य

  • भाषा सहज-सरल खड़ी बोली है साथ हो संस्कृत के तत्सम शब्दों का समुचित प्रयोग हुआ है।
  • चंद्रिका और अमावस्या (कृष्णा रात) की उपमा पद्यांश में अनोखा भाव भर देती है।
  • ‘शरण-बिंब’ में रूपक अलंकार है।

दुविधा-हत साहस है, दिखाता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चांद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

शब्दार्थ: दुविधा-हत – दुविधा में फँसा हुआ, पंथ – राह, रास्ता, देह – तन, शरीर, रस-बसंत – रस से भरपूर मतवाली वसंत ऋतु, वरण – अपनाना।

कवि कहते हैं कि मनुष्य सुख की आस में इधर-उधर भटकता रहता है, पर हमेशा उसे अपने जीवन में इच्छित वस्तु मिल नहीं जाती। इसी कारण चाहे तुम शरीर से सुखी हो, परन्तु तुम्हारे शरीर में असीम दुःख समाये हुए हैं यानी सुख-सुविधाओं के होते हुए भी तुम मन से खुश नहीं हो। एक पाने पर दूसरा पाने की लालसा जगती है, दूसरा पाने पर तीसरे की इच्छा होती है। इस प्रकार लोभी मन कभी सुखी नहीं होता। कवि कहते हैं कि मनुष्य को यह कष्ट बार-बार सताता रहता है कि जो चीज़ उसे ठीक समय पर मिलनी थी, वह न मिल पाई। जिस प्रकार शरद पूर्णिमा की रात को चाँद न निकले तो शरद पूर्णिमा का सारा सौंदर्य और महत्व समाप्त हो जाता है उसी प्रकार अगर मनुष्य को जीवन में सुख-सम्पदा नहीं मिली तो इसका दुःख उसे जीवन भर सताता है। यौवनावस्था में प्रिय के सामीप्य का सुख मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पाया। मतवाली-रसभरी बसंत ऋतु के बीत जाने पर यदि फूल खिले तो क्या हुआ? बसंत तो रंग-बिरंगे सुगंधित फूलों की ऋतु है। ऐसे समय यदि फूल ही न हो तो वह कैसी बसंत होगी? निश्चित ही वह मतवाली, सुवासित और सुखदायी न होगी। व्यक्ति को असफलताओं को भूलकर भविष्य को ठीक करने का प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि अतीत से कुछ मिलता नहीं हैं बल्कि मन का दु:ख ही दोगुना हो जाता है।

काव्य सौंदर्य

  • भाषा सहज-सरल खड़ी बोली है|
  • कहीं-कहीं संस्कृत के तत्सम शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। जैसे- दुविधा-हत साहस।
  • ‘दुख दूना’ में अनुप्रास अलंकार है|
  • दार्शनिकता के साथ छायावाद का भी प्रभाव दिखाई पड़ता है|
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